परमेश्वर सिंह | महाराष्ट्र : भाषा से राजनीति तक फैला ये तनाव, महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिन्दी भाषा विवाद एक बार फिर चरम पर पहुँचता दिख रहा है। राज्य के कई हिस्सों में उत्तर भारतीय समुदाय ने आरोप लगाया है कि भाषा के नाम पर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, और कुछ स्थानों पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ता कथित रूप से दबाव बनाते, धमकाते और हिंसा करने की कोशिश करते नजर आए हैं। स्थिति अब चिंताजनक मोड़ पर खड़ी है जहां भाषा के बहाने समाज में दरार गहरी होती दिखाई दे रही है। ज़मीनी हालात “मराठी भाषा बोलो नहीं तो परिणाम भुगतो”- पीड़ितों का आरोप हैँ की स्थानीय बाजारों, चौराहों और परिवहन केंद्रों से जो विवरण सामने आए हैं, वे गंभीर चिंता पैदा करते हैं। पीड़ित दुकानदारों को कहा गया कि “मराठी में बात करो, नहीं तो दुकान बंद करवाएंगे” विरोध पर धक्का-मुक्की, थप्पड़ और सार्वजनिक अपमान, रिक्शा व टैक्सी चालकों पर हिन्दी बोलने का विरोध, जबरदस्ती मराठी में बात करवाई,भीड़ इकट्ठा कर दबाव व दहशत का माहौल बनाना गया, कुछ पीड़ितों ने डर के चलते पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया हिंदी बोलते ही कुछ लोग हमें घेर लेते हैँ अब हम लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। मौजूदा शिकायतों और घटनाक्रम को देखते हुए निम्न BNS (भारतीय न्याय संहिता, 2023) धाराएँ संभावित रूप से लागू हो सकती हैं- 1) BNS धारा 115 – स्वेच्छा से चोट पहुँचाना, मारपीट या शारीरिक हमला। 2) BNS धारा 117 – गंभीर चोट पहुँचाना, यदि पीड़ित को गंभीर शारीरिक चोट पहुँची हो। 3) BNS धारा 351- आपराधिक धमकी (Criminal Intimidation) नुकसान पहुँचाने की धमकी देना। 4) BNS धारा 352 – भय, आतंक या दहशत पैदा करना, सार्वजनिक जगहों पर डर फैलाने की शिकायत। 5) BNS धारा 324- अवैध दबाव / बाध्यता (Coercion) जबरन भाषा बोलवाना या किसी पर अपनी इच्छा थोपना। 6) BNS धारा 357 – शांति भंग / लोक व्यवस्था में बाधा, समुदायों के बीच तनाव या उपद्रव। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि वीडियो फुटेज या प्रत्यक्ष साक्ष्य मिलते हैं, तो यह मामला अत्यंत गंभीर बन सकता है। पुलिस की जांच- कार्रवाई तेज़ लेकिन सवाल बरकरार, पुलिस ने कुछ शिकायतों को दर्ज कर जांच शुरू कर दी है, संवेदनशील इलाकों में गश्त भी बढ़ाई है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार फुटेज एकत्र किए जा रहे हैं, प्रत्यक्षदर्शियों से बयान भी लिए जा रहे हैं, विवादित क्षेत्रों की निगरानी बढ़ी है, नागरिकों का कहना है- कार्रवाई कम, दहशत ज़्यादा दिखाई देती है। पुलिस को कड़े कदम उठाने चाहिए। MNS का पक्ष- हम सांस्कृतिक मुद्दे उठा रहे हैं, हिंसा नहीं, MNS के कई नेताओं ने इन आरोपों से दूरी बनाई है। उनका कहना है वे केवल “मराठी मानूस और भाषा की प्रतिष्ठा” के लिए अभियान चला रहे हैं। हिंसा या धमकी देने वालों से पार्टी का कोई संबंध नहीं हैँ।हालाँकि राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि चुनावी मौसम नज़दीक आते ही भाषा का मुद्दा अक्सर गरमाया जाता है। प्रवासी बनाम स्थानीय टकराव की आशंका, विशेषज्ञों का मानना है कि रोजगार, स्थानीय पहचान, क्षेत्रीय राजनीति और संगठनात्मक दबाव अक्सर भाषा विवाद को और उग्र बना देते हैं, सामाजिक संगठनों की अपील है कि भाषा को टकराव का नहीं, संवाद का माध्यम बने रहना चाहिए। भाषा, राजनीति और डर कहाँ जाएगी, महाराष्ट्र की राह?- महाराष्ट्र में बढ़ता भाषा विवाद अब सिर्फ संवाद का मामला नहीं, बल्कि सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द का सवाल बन चुका है। यदि प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई नहीं की तो यह तनाव आने वाले समय में बड़ी राजनीतिक हलचल का कारण बन सकता है, फिलहाल जनता की मांग स्पष्ट है हमें भाषा नहीं, सुरक्षित माहौल चाहिए।
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