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शिवसेना में समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर सवाल?, उत्तर भारतीय संगठन में असंतोष, मनमानी से पार्टी को चुनावी नुकसान की चेतावनी

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परमेश्वर सिंह | नवी मुंबई :  शिवसेना (शिंदे गुट) के वरिष्ठ पदाधिकारी एवं उत्तर भारतीय संगठन के प्रमुख चेहरा कमलेश वर्मा ने पार्टी संगठन में गंभीर असंतोष उजागर करते हुए आरोप लगाया है कि वर्षों तक निष्ठा, संघर्ष और चुनावी मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को हाशिये पर डालकर, पार्टी-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहे लोगों को महत्वपूर्ण पदों से नवाजा जा रहा है। उनका कहना है कि यदि समय रहते इस प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो इसका सीधा नुकसान आगामी महानगरपालिका चुनावों में पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। कमलेश वर्मा का राजनीतिक सफर कांग्रेस से शुरू हुआ, जहां वे सोनिया गांधी गुट में नवी मुंबई सचिव रहे। वर्ष 2000 में नवी मुंबई महानगरपालिका चुनाव में उन्होंने अधिकृत प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ते हुए दूसरा स्थान हासिल किया। 2005 में टिकट न मिलने के बावजूद उन्होंने चुनाव मैदान में उतरकर सत्तारूढ़ नगरसेवक को पीछे छोड़ते हुए उल्लेखनीय मत प्राप्त किए। बाद में, जब नवी मुंबई में कांग्रेस कमजोर हुई, तब वे कई नगरसेवकों और वरिष्ठ नेताओं के साथ शिवसेना में शामिल हुए और पूरी निष्ठा से संगठन कार्य में जुट गए। उनके अनुसार, उत्तर भारतीय समाज में मजबूत पकड़ और संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए पार्टी नेतृत्व ने उन्हें जिला स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। अपने निजी संसाधनों और अथक परिश्रम से उन्होंने वार्ड स्तर से लेकर जिला स्तर तक मजबूत कमिटियां खड़ी कीं। लोकसभा, विधानसभा और महानगरपालिका चुनावों में उनके नेतृत्व में उत्तर भारतीय कार्यकर्ताओं की सक्रिय भूमिका रही, जिसका लाभ पार्टी प्रत्याशियों की जीत के रूप में सामने आया। शिवसेना में विभाजन के बाद भी कमलेश वर्मा ने नेतृत्व के साथ खड़े रहकर युति धर्म निभाया। लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी नरेश म्हस्के की जीत में उनके संगठन के योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। विधानसभा चुनाव के दौरान शीर्ष नेतृत्व के निर्देशों के अनुसार उन्होंने केवल युति प्रत्याशियों के पक्ष में कार्य किया, बावजूद इसके कि संगठन के भीतर कुछ लोगों ने पक्ष-विरोधी गतिविधियां कीं। कमलेश वर्मा का आरोप है कि जिन लोगों ने खुलेआम पार्टी लाइन के खिलाफ काम किया, आज वही प्रभावशाली पदों पर काबिज हैं। इससे न केवल उत्तर भारतीय संगठन में लगभग 25% प्रतिशत कार्यकर्ता अलग-थलग पड़े, बल्कि पार्टी की जमीनी पकड़ भी कमजोर हुई। उनका कहना है कि यह स्थिति कुछ स्थानीय नेताओं की मनमानी और स्वार्थपूर्ण राजनीति का परिणाम है, जिसकी सही जानकारी शीर्ष नेतृत्व तक नहीं पहुँच पा रही है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पार्टी प्रमुख एकनाथ शिंदे जहां हर वर्ग और समाज को साथ लेकर चलने की नीति पर काम कर रहे हैं, वहीं कुछ स्थानीय नेता धन और व्यक्तिगत हितों के लिए संगठन को भीतर से तोड़ने का कार्य कर रहे हैं। इसका दुष्परिणाम उत्तर भारतीय समाज सहित अन्य समुदायों में बढ़ती नाराज़गी के रूप में सामने आ रहा है। कमलेश वर्मा ने अपनी नाराज़गी और आपत्तियों को सांसद नरेश म्हस्के, उपनेता विजय नाहटा, पूर्व जिलाप्रमुख विजय चौगुले सहित कई वरिष्ठ पदाधिकारियों को लिखित रूप में अवगत कराया है, लेकिन अब तक कोई ठोस जवाब या समाधान सामने नहीं आया है, महानगरपालिका चुनाव सिर पर होने के बीच, कमलेश वर्मा ने चेतावनी दी है कि यदि समर्पित कार्यकर्ताओं को सम्मान और संगठन में न्याय नहीं मिला, तो इसका सीधा असर पार्टी के पारंपरिक मतदाता आधार पर पड़ेगा। उत्तर भारतीय समाज के कई कार्यकर्ताओं का मानना है कि उनकी वर्षों की मेहनत को नज़रअंदाज़ करना, पार्टी की एकजुटता के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

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