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ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किया था विद्रोह

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अख्तर हाशमी, ब्यूरो चीफ / मिर्ज़ापुर: मिर्जापुर लालगंज थाने का किया था घेराव सन् 1941 में जब अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो के नारे के साथ आंदोलन शुरू हो चुका था। पूरे देश में नौजवान अंग्रेजों के विरोध में संगठित हो रहे थे। उसी दौरान लालगंज के पतुलखी गांव निवासी पं शिवमूर्ति दुबे व कठवार गांव निवासी रविनंदन दुबे ने हजारों लोगों के साथ (ज्यादातर आदिवासी) लालगंज थाने को घेर लिया था। इनके साथ में पं. राजमणि दुबे, पं. केदारनाथ तिवारी, पं. केदारनाथ मालवीय एवं सैठोले कोल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जमींदार होने के बाद भी देश के लिए सही जेल में यातनाएं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं शिवमूर्ति दुबे, पं रविनंदन दुबे जमींदार परिवार से जुड़े थे लेकिन वतन की आजादी के लिए उन्होंने सभी सुखों का त्याग दिया और जेल में यातनाएं सही। लालगंज थाने के मुख्य द्वार के पास अशोक स्तंभ लाट है उस शिलालेख पर पं. राजमणि दुबे, पं. शिवमूर्ति दुबे, पं. रविनंदन दुबे, पं. केदारनाथ तिवारी, पं. केदारनाथ मालवीय, सैठोले कोल का नाम अंकित है। यह सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सच्चे गांधीवादी थे। क्षेत्र में लोग उनको आज भी सम्मान की दृष्टि से देखते है और उनको अपना प्रेरणा और देश का सच्चा सपूत मानते है। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए किया था आह्वान सैठोले कोल ने महुलरिया गांव के पास के जंगल में हजारों की संख्या में इकठ्ठा कर कोल समुदाय के लोगों की सभा की थी और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का आह्वान किया था। उन्होंने आदिवासी नवयुवकों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने का संकल्प दिलाया था। इसकी जानकारी पर बौखलाई अंग्रेजी पुलिस ने सैठोले कोल की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी थी। सैठोले उस समय पूर्वांचल में इकलौते आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। जिनकी अंग्रेजों में दहशत रहती थी।

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