किसके सीर होगा मिर्जापुर की ताज कौन बनेगा मिर्जापुर का सरताज
अख्तर हाशमी / मिर्ज़ापुर: मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र की राजनीति गर्म है और सियासी रणनीतिकार अपने-अपने दलों को जिताने के लिए लामबंद हो चुके हैं। एनडीए उम्मीदवार और दो बार की सांसद अनुप्रिया पटेल को पहली बार बराबर की टक्कर मिली है क्योंकि समाजवादी पार्टी ने रमेश चंद बिंद को मैदान में उतारकर केंद्रीय मंत्री को सीधी चुनौती दी है। ऐसे में हम 5 प्वाइंट में बता रहे हैं कि कैसे अनुप्रिया और रमेश बिंद इस वक्त बराबरी की लड़ाई में हैं।
पहला कारण: राजनीतिक एक्सपर्ट्स की मानें रमेश बिंद के पीछे सिर्फ जातिगत समीकरण ही नहीं बल्कि जिले का सियासी समीकरण भी काम कर रहा है। अनुप्रिया के खिलाफ एंटी इंकबेंसी फैक्टर अब रमेश बिंद के साथ तेजी से जुड़ रहा है। कुछ विश्लेषक यह मान रहे हैं कि इसी तरह का माहौल बना रहा तो केंद्रीय मंत्री की सीट फंस सकती है। दूसरा कारण: रमेश बिंद का मिर्जापुर में अच्छा-खासा जनाधार है। वे तीन बार जिले की सबसे कठिन मझवां विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। बसपा से लेकर समाजवादी पार्टी और खुद के बिंद वोटर्स पर उनकी पकड़ बताई जा रही है। यह सब कांबिनेशन रमेश बिंद के पक्ष में हुआ तो अनुप्रिया को मुश्किल होगी। तीसरा कारण: बीजेपी के कट्टर समर्थक भी अनुप्रिया से नाराज बताए जा रहे हैं। शहर में मनोज श्रीवास्तव की बगावत को अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण मतदाता भी अनुप्रिया से नाराज बताए जा रहे हैं, जो उनके खिलाफ जा सकते हैं। बीजेपी के कई कार्यकर्ता हैं, जो दबी जुबान में यह कहते हैं कि मोदी तुमसे बैर नहीं, अनुप्रिया की खैर नहीं। यह नारा वोट में बदला तो एनडीए को नुकसान होगा। चौथा कारण: मिर्जापुर में गंगा पार यानि मझवां विधानसभा क्षेत्र में अनुप्रिया पटेल की मौजूदगी लगभग न के बराबर रही है। इसकी वजह से हर वर्ग के मतदाता उनसे नाराज बताए जा रहे हैं। कुछ महीने पहले ही जब वे कछवां थानाक्षेत्र में एक जगह पटेल बाहुल्य एरिया में पहुंची तो उनका विरोध किया गया था। इससे यही समझ आता है कि जिले की 5 विधानसभा में मझवां, मड़िहान, छानबे और सदर में उन्हें कुछ वोटों का नुकसान हो सकता है।
पांचवां कारण: राजनैतिक समीक्षक बताते हैं कि अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल की सक्रियता और फिर मंत्री पद के लिए की गई लामबंदी से बीजेपी के बड़े नेता नाराज हैं। जिले के एक पूर्व मंत्री कई बार खुलेआम विरोध कर चुके हैं। यदि वे इस चुनाव में शिथिल हुए और अनुप्रिया के सक्रिय नहीं हुए तो फिर हालात बदल सकते हैं। रमेश बिंद के खिलाफ भी पब्लिक: जैसे ही भदोही से रमेश बिंद का टिकट कटा, वे तुरंत दूसरे दल की शरण में चले गए। इससे उनके व्यक्तित्व पर असर पड़ा है। आम मतदाता को लगता है कि जीत के लिए वे कभी, किसी भी दल से हाथ मिला सकते हैं। दावेदारी के बाद रमेश बिंद का एक पुराना वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें वे एक जाति के लोगों को अपशब्द कह रहे हैं। इतना ही नहीं मझवां में तीन बार जीतने के बाद भी उनके नाम कोई ऐसा विकास कार्य नहीं है, जिससे जनता उन्हें पसंद करे। राजनैतिक विश्लेषक बताते हैं कि इस बार मिर्जापुर ही नहीं पूरे देश का चुनाव बेहद साइलेंट मोड पर लड़ा जा रहा है। ऐसे में भविष्यवाणी करना मुश्किल है। लेकिन जिस तरह के रूझान दिख रहे हैं, उससे साफ जाहिर है कि पहली बार ही सही लेकिन अनुप्रिया को कड़ी टक्कर मिल रही है।