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आखिर नारी शक्ति कहां खो गई ? आशीष शुक्ल

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परमेश्वर सिंह / उत्तर प्रदेश, रायबरेली में आज हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।आजकल सोसल मीडिया के माध्यम से तीव्र गति से बढ़ता हुआ जागरूकता अभियान चल रहा है एक ओर नारी को कमजोर किया जाता है। दूसरी ओर नारी को सशक्त करने का प्रयास किया जाता है।आज समाज का लगभग हर लोग शिक्षित हो गये है। अगर शिक्षित नहीं भी हैं तो भी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि नारियों पर बुरी दृष्टि डालना अपराध है।आशीष शुक्ल स्वयं की व्यथा से देश को अवगत कराना चाहते हैं जिसे  नारी पुरुष दोनों की आंतरिक सज्जा विनष्ट हो रही है। किसी अंजान नारी व पुरुष को एकसाथ रहने को पाप की दृष्टि से लोग देखते हैं। और बिना सोचे समझे अपशब्द कहने को भी साहस बना लेते हैं। हमारे समाज की विचार पद्धति इतने निचले स्तर पर जा पहुंची है जिसका आकलन करना असम्भव सा लगता है। वर्तमान में समाज की भावनाओं में वासनाओं का व्यवहार देखने को मिलता है। प्रतिदिन लोगो के द्वारा वही देखने को मिलता है जिसे देखने मात्र से हृदय में पाप का भाव लुप्त होता हुआ दिख रहा है। भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति को देवी की संज्ञा दी गई है। और हमारे देश की महिला देवी तुल्य समझी जाने वाली नारियां अर्धनग्न स्थिति में बाहर निकलना पसन्द नहीं करती थी। परन्तु आज कल नारिया देवी रूप छोड़ कर आधुनिक स्पर्धा में मोटरसाइकिल पे चुस्त पहनावा पहनकर अर्धनग्नता से प्रदर्शन करती लगती हैं। अक्सर देखता हूं मोटरसाइकिल पर सवार नारियां अपने पति वा पुरुष मित्र को दोनों हाथों से जकड़ लेती हैं और खुलेआम अश्लीललता का प्रर्दशन करती हैं जिसके परिणामस्वरूप समाज साकारात्मक दृष्टिकोण से नाकारात्मक पक्ष में परिवर्तित हो रहा है। मेरा कहने आशय दो लाइनों में जिन्हें नारीशक्ति बनना है वो सनातनधर्म को समझ कर चलें।

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