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मिर्जापुर सीट पर जीत के लिए ‘भीतरघाती’ दांव

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अख्तर हाशमी / मिर्जापुर : मिर्ज़ापुर लोकसभा सीट का सियासी गणित दिन-ब-दिन उलझता जा रहा है। दो बार सांसद और मंत्री रही अनुप्रिया पटेल की घेरेबंदी में अब समाजवादी पार्टी ने ऐसे लड़ाके को उतारा है, जिनके नाम एक-दो नहीं बल्कि 4 राजनैतिक जीत दर्ज है। तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे रमेश बिंद अब सपा के टिकट पर अनुप्रिया को कड़ी टक्कर देने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। इससे पहले केंद्रीय मंत्री की सगी बहन और मां ने अड़चन डाली और पहली बार उनके सामने सीधी लड़ाई का ऐलान कर दिया। अपना दल (कमेरावादी) मिर्जापुर से पहली बार चुनावी मैदान में है। सपोर्ट में ओवैसी की पार्टी  ( AIMIM ) भी है। हालांकि यह माना जा रहा था कि अनुप्रिया के सामने पल्लवी पटेल या कृष्णा पटेल बराबरी से नहीं लड़ पाएंगी क्योंकि केंद्रीय मंत्री होने के अलावा अनुप्रिया की अपनी लोकप्रियता भी जिले में कम नहीं है। अब इस लड़ाई में सपा के मजबूती से उतरने के बाद मुकाबला दिलचल्प हो गया है। इन सबके बीच अगर हम बहुजन समाज पार्टी की चर्चा न करें तो पूरी सियासत और लड़ाई का गुणा-गणित समझ नहीं आएगा। कारण यह है कि मिर्जापुर में यह हवा चली कि अनुप्रिया पटेल से ब्राह्मण और ठाकुर मतदाता के अलावा व्यापारियों का बड़ा वर्ग नाराज है। हालांकि अंदरखाने यह भी कहा जाता है कि भले कुछ भी लेकिन सवर्ण मतदाता मोदी के नाम पर ही वोट देगा। इस गणित को भांपते हुए मायावती ने ब्राह्मण कैंडिडेट मनीष तिवारी को टिकट दिया है। मनीष की छवि साफ-सुथरी है और युवा मतदाताओं में मनीष की अच्छी पैठ मानी जाती है। ऐसे में यदि वे अनुप्रिया से नाराज लोगों को अपने साथ जोड़ सके तो एनडीए के लिए मुश्किल होगी। अब अनुप्रिया के सामने तीन मजबूत प्रत्याशी हैं। पहले सपा से रमेश बिंद, दूसरे बसपा से मनीष तिवारी और तीसरे कमेरावादी से दौलत सिंह पटेल। इससे अलग अनुप्रिया को जिले के सबसे बड़े वोट बैंक यानि पटेल बिरादरी का सहारा है। साथ में मोदी का नाम भी उनके काम आ सकता है। अगर रमेश बिंद के पक्ष में बिंद, मुस्लिम और यादव एकजुट हुए तो अनुप्रिया को बड़ी दिक्कत होगी। कमेरावादी के पटेल कैंडिडेट ने पटेल, कुर्मी वोट में सेंधमारी की तो अनुप्रिया की राह मुश्किल होगी। बसपा का कैडर वोट और नाराज ब्राह्मण मनीष त्रिपाठी के पक्ष में गए तो भी अनुप्रिया को परेशानी का सामना करना होगा। हालांकि चुनावी समीकरण कुछ भी कहे लेकिन सारे चक्रव्यूह के बीच अनुप्रिया पटेल अकेले सब पर भारी दिख रही हैं। उनके साथ केंद्र सरकार, राज्य सरकार, भाजपा संगठन तो है ही, साथ में पटेल बाहुल्य इलाकों में उनकी लोकप्रियता बताती है कि अनुप्रिया की राह मुश्किल जरूर है लेकिन मंजिल न मिले ऐसा संभव नहीं दिखता। खैर, अब वक्त कम है और महीने भर के भीतर मिर्जापुर की गद्दी किसे मिलती है, यह तय हो जाएगा।

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